तथाकथित आजादी के “वो पंद्रह दिन”… (श्रृंखला भाग-12)
15 August 1947 Untold Stories Part 12 | आज परमा एकादशी है। चूंकि इस वर्ष पुरषोत्तम मास श्रावण महीने में आया है, इसलिए इस पुरषोत्तम मास में आने वाली एकादशी को परमा एकादशी कहते हैं। कलकत्ता के नजदीक स्थित सोडेपुर आश्रम में गांधीजी के साथ ठहरे हुए लोगों में से दो-तीन लोगों का परमा एकादशी का व्रत हैं। उनके लिए विशेष फलाहार की व्यवस्था की गई। लेकिन गांधीजी के दिमाग में कल रात को सुहरावर्दी के साथ हुई भेंट घूम रही हैं।
शहीद सुहरावर्दी, इस नाम में ‘शहीद’ शब्द का बलिदान से कतई कोई संबंध नहीं है।
यदि हुआ भी तो वह ‘दूसरों की हत्या करने वाला’ जैसा ही संबंध है। 1946 के ‘डायरेक्ट एक्शन’ का खलनायक सुहरावर्दी, उस घटना के एक वर्ष बाद गांधीजी से भेंट करने आया हैं। ‘डायरेक्ट एक्शन डे’ वाले दिन अत्यंत क्रूरता और बर्बरता से पांच हजार हिंदुओं की हत्या का पाप अपने माथे पर लिए शान से घूम रहा है। अत्यंत धूर्त, स्त्री-लम्पट, व्यसनी और क्रूर सुहरावर्दी देखने में एकदम पढ़ा-लिखा और सभ्य व्यक्ति लगता हैं। कट्टर मुसलमान होने के बावजूद कपड़े पहनता के मामले में वह अंग्रेजों की राह पर चलता है।
आज गांधीजी की प्रार्थना में काफी भीड़ है। कुछ पत्रकार भी सामने बैठे दिखाई दे रहे हैं। भजन और सूत कातने के बाद गांधीजी बोलना आरंभ करते हैं, “अब केवल दो दिन बाद ही आने वाला पंद्रह अगस्त भारत के इतिहास में एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण दिवस सिद्ध होने जा रहा है। मैंने सुना है कि कलकत्ता के कुछ मुसलमान इस दिवस को ‘शोक दिवस’ के रूप में मनाने जा रहे हैं। मैं आशा करता हूं कि यह समाचार गलत होगा।
जाहिर है कि यह महत्त्वपूर्ण दिवस कैसे मनाना चाहिए इस बारे में प्रत्येक व्यक्ति का दृष्टिकोण अलग होगा। और वैसे भी हम किसी पर भी यह दिन विशिष्ट पद्धति से मनाने के लिए जबरदस्ती नहीं करेंगे। अब प्रश्न यह है कि पाकिस्तान के हिंदुओं को क्या करना चाहिए ? तो मेरा जवाब यही है कि उन्हें पाकिस्तान के राष्ट्रध्वज को प्रणाम करना चाहिए।”
“मैंने यह भी सुना है कि भारत में पुर्तगाल और फ्रांस शासित राज्यों अर्थात (गोवा, दमण, दीव, पांडिचेरी आदि) में रहने वाले भारतीय भी पंद्रह अगस्त के दिन स्वतंत्रता की घोषणा करने वाले हैं।
यह पूरी तरह से मूर्खता है। इसका अर्थ यही निकाला जाएगा कि हम भारतीयों में घमण्ड आ गया है। अभी ब्रिटिश भारत छोड़कर जा रहे हैं, फ्रेंच अथवा पुर्तगाली नहीं। मेरा यह मानना है कि इन राज्यों में रहने वाले भारतीय भी आज नहीं तो कल स्वतंत्र हो ही जाएंगे। परंतु उन्हें आज क़ानून अपने हाथ में नहीं लेना चाहिए।”
“कल रात को शहीद साहब सुहरावर्दी मुझसे भेंट करने आए थे। उन्होंने मुझसे कहा है कि ऐसी अशांत परिस्थिति में मुझे कलकत्ता छोड़कर नहीं जाना चाहिए। उन्होंने मुझसे अनुरोध किया है कि मैं कलकत्ता में अपना मुकाम कुछ दिन और बढ़ाऊं और जब तक पूर्ण शांति स्थापित नहीं हो जाती तब तक मैं यहीं रहूं।”
“उनका यह अनुरोध स्वीकार करने के लिए मैंने सुहरावर्दी साहब के सामने एक शर्त रखी है और वह शर्त है कि कलकत्ता के किसी अशांत स्थान पर सुहरावर्दी साहब मेरे साथ एक छत के नीचे रहें और उस स्थान पर पुलिस अथवा सेना की कोई सुरक्षा नहीं हो। अगले एक-दो दिनों में सीमा आयोग का निर्णय घोषित होगा और विभाजन की निश्चित रेखा स्पष्ट हो जाएगी। ऐसे कठिन समय पर हिंदुओं और मुसलमानों, दोनों को ही उस आयोग के निर्णय का सम्मान करना आवश्यक है।”
श्रीनगर कश्मीर के महाराजा ने उनके प्रधानमंत्री रामचंद्र काक को बर्खास्त कर दिया है। प्रधानमंत्री के रूप में काक का केवल दो वर्षों का कार्यकाल अत्यधिक विवादित रहा है। उन्होंने काँग्रेस और जवाहरलाल नेहरू से खुली दुश्मनी मोल ले ली थी। कुछ माह पूर्व जब 19 से 23 जून के बीच लॉर्ड माउंटबेटन काश्मीर में प्रवास पर आए थे तब उन्होंने महाराज से निवेदन किया था कि कश्मीर का विलीनीकरण पाकिस्तान में कर दिया जाए।
उस समय महाराज ने यह सलाह सिरे से ठुकरा दी थी। लेकिन इसके बाद काक महाशय ने यह पैंतरा चला था कि कश्मीर का विलीनीकरण यदि पाकिस्तान में नहीं हो रहा हो तो वह भारत में भी नहीं होना चाहिए। काक ने महाराज को सलाह दी कि कश्मीर को स्वतंत्र ही रखें। नौ-दस दिन पहले यदि गांधीजी ने अपनी श्रीनगर यात्रा में स्पष्ट रूप से अपना मत रखा होता कि ‘कश्मीर का विलय भारत में ही होना चाहिए’, तो संभवतः कई बातें बेहद सरल हो जातीं।
लेकिन गांधीजी के लिए भारत और पाकिस्तान दोनों ही उनकी अपनी संतानें लगती थीं, इसलिए उन्होंने कश्मीर के विलीनीकरण के बारे में कुछ भी नहीं कहा। नेहरू के आग्रह पर गांधीजी ने ‘रामचंद्र काक को निकाल दीजिए’, इतना ही सुझाव महाराज को दिया। गांधीजी की इस सलाह का सम्मान करते हुए महाराजा हरिसिंह ने उसे अमल में लाया और मूलतः हिमाचल प्रदेश के परंतु महाराज के रिश्तेदार ‘जनक सिंह’ को कश्मीर का नया प्रधानमंत्री घोषित किया। रामचंद्र काक ने भागने का प्रयास किया, परंतु वे सफल नहीं हुए। महाराजा हरिसिंह ने उन्हें घर में ही नजरबन्द रखने का आदेश दिया। अब कश्मीर की राजनीति में एक नया अध्याय शुरू हो चुका है…
दिल्ली…
भारत सरकार के कार्मिक मंत्रालय का एक आदेश निकला है, जिसमें डॉक्टर जीवराज मेहता को ‘डायरेक्टर जनरल ऑफ मेडिकल सर्विसेस’ के रूप में नियुक्ति प्रदान की गई है। ब्रिटिश शासन की दृष्टि से यह एक ऐतिहासिक घटना है। क्योंकि ऐसा पहली ही बार हुआ है कि ‘इण्डियन मेडिकल सर्विस’ से बाहर के किसी चिकित्सक की इस सर्वोच्च पद पर नियुक्ति हुई है। डॉक्टर जीवराज मेहता गांधीजी के निजी चिकित्सक हैं और पिछले बीस वर्षों से वे ही गांधीजी के स्वास्थ्य का ध्यान रखते आए हैं।
पांडिचेरी…
भारत की फ्रेंच सरकार ने आज की अपनी बैठक में सभाओं और रैलियों पर लगाया हुआ प्रतिबंध समाप्त कर दिया। ‘इस मामले में गिरफ्तार किए गए लोगों को जल्दी ही छोड़ दिया जाएगा’ यह घोषणा भी की गई है, भारत में फ्रेंच गवर्नर और अन्य फ्रेंच अधिकारियों ने पेरिस से वापस आते ही कलकत्ता में गांधीजी से भेंट की और इसके बाद ही यह घोषणा की गई है। यह घोषणा पांडिचेरी के साथ ही माहे और चंदननगर में भी लागू मानी जाएगी।
लाहौर…
कल रात से ही लाहौर में भड़के भीषण दंगों ने अब रौद्र रूप धारण कर लिया है। कल किसी ने यह अफवाह उड़ा दी थी कि रेडक्लिफ के सीमा आयोग ने लाहौर को भारत में शामिल करने का निश्चय कर लिया है। बस फिर क्या था! मुस्लिम नेशनल गार्ड के लोग तो इसी अवसर की प्रतीक्षा में थे। उनकी तरफ से तो हिंसा की पूरी तैयारी थी। इस अफवाह के कारण सामान्य मुसलमान भी आक्रोशित हो उठा। कल रात से ही आगजनी की घटनाएं शुरू हो गई थीं।
लाहौर के कुछ इलाकों में संघ के स्वयंसेवकों ने अदभुत एवं अतुलनीय शौर्य का प्रदर्शन करते हुए कई हिन्दू-सिखों के प्राण बचाए। संघ कार्यालय हिन्दू मोहल्ले में होने के बावजूद ‘मुस्लिम नेशनल गार्ड’ इस पर हमला करेंगे ऐसी सूचना मिलने के कारण बहुत से स्वयंसेवक, संघ कार्यालय की रक्षा के लिए वहां रात भर मजबूती से डटे रहे।
आज सुबह दस बजे से ही मुस्लिम गुण्डों के आक्रमण और भी तीव्र होते चले गए। चूंकि सिख अपने पहनावे के कारण जल्दी पहचान में आ जाते हैं, इसलिए सिखों पर ही सबसे ज्यादा हमले हुए। डिप्टीगंज नामक हिन्दू-सिख बहुल इलाके में सुबह ग्यारह बजे एक प्रौढ़ सिख व्यक्ति को मुस्लिम गुण्डों ने सरेराह और दिनदहाड़े हत्या कर दी। उसकी अंतडियां बाहर निकाल लीं। वह सिख रास्ते के बीचोंबीच तडपता रहा और मात्र पांच मिनट में ही उसने दम तोड़ दिया।
लाहौर की सड़कों पर अत्यंत भयानक और पाशविक अत्याचार जारी थे। दोपहर तीन बजे तक अधिकृत रूप से मृतकों की संख्या पचास पार कर चुकी थी। इन मृतकों में अधिकांश हिन्दू और सिख ही थे। ऐसे थोड़े बहुत भाग्यशाली लोग थे जो अस्पताल पहुंच सके। उनके ज़ख्म इतने विचित्र, भयानक और गहरे थे कि डॉक्टर और नर्सें भी एक-एक घायल के साथ अक्षरशः मृत्यु से युद्ध कर रहे थे।
दोपहर आते-आते लाहौर के दंगों की आग गुरुदासपुर और लायलपुर तक पहुंच चुकी थी। अंततः दोपहर चार बजे गवर्नर जेनकिंस ने लॉर्ड माउंटबेटन को टेलीग्राम भेजा कि लाहौर और अमृतसर की पुलिस पर भरोसा नहीं किया जा सकता। ‘मुस्लिम नेशनल गार्ड’ के कार्यकर्ता पुलिस की वर्दी में दंगे कर रहे हैं। परिस्थिति नियंत्रण से बाहर हो चुकी है।
इधर लाहौर जल रहा हैं… लाहौर के साथ ही पूरा पंजाब भी जलने की कगार पर हैं। लेकिन दिल्ली में बैठे सत्ताधीशों को इससे कोई खास फर्क पड़ता नहीं दिख रहा।
कलकत्ता…
दोपहर के दो बजे हैं, कलकत्ता बंदरगाह के ढाई लाख मुसलमान खलासियों की तरफ से एक पैम्फलेट प्रकाशित किया गया है। इस पैम्फलेट में मुस्लिम खलासियों के संगठन ने धमकी दी है कि ‘यदि कलकत्ता को पाकिस्तान में शामिल नहीं किया गया, तो वे अनिश्चितकालीन हड़ताल करेंगे।’ इसमें आगे कहा गया है कि सन् 1690 से, जब से कलकत्ता बंदरगाह का निर्माण हुआ है तभी से यह मुस्लिमों के नियंत्रण में है। इस कारण हिन्दू बहुल पश्चिम बंगाल को इसे देना किसी भी अर्थ में उचित नहीं कहा जा सकता।’
कलकत्ता स्थित सोडेपुर आश्रम, दोपहर दो बजे। आश्रम में गांधीजी झपकी ले रहे हैं। इस कारण अखंड बंगाल के ‘प्रधानमंत्री’, हुसैन शहीद सुहरावर्दी की ओर से आए हुए, कलकत्ता के पूर्व महापौर उस्मान के सामने इंतज़ार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। तीन बजे उस्मान की गांधीजी से भेंट हुई। उस्मान अपने साथ शहीद सुहरावर्दी का एक पत्र लेकर आए हैं। इस पत्र में सुहरावर्दी ने गांधीजी के साथ एक ही छत के नीचे रहने वाला प्रस्ताव मान्य कर लिया है।
यह पत्र पढ़ते समय गांधीजी के चश्मे के अंदर से चमकने वाली उनकी आंखें स्पष्ट दिखाई दे रही हैं। अनेक लोगों ने गांधीजी से कहा था कि ‘सुहरावर्दी पर विश्वास नहीं करना चाहिए। यह एक अहले दर्जे का बदमाश व्यक्ति है।’ परंतु किसी व्यक्ति के बारे में ऐसी कोई भी राय कायम करना गांधीजी को मंजूर नहीं था। इसीलिए उन्होंने इस व्यक्ति के साथ एक छत के नीचे रहने का प्रयोग करके देखना निश्चित किया।
कराची…
दोपहर के दो बजे, अब कुछ ही दिनों के लिए शेष रह गए कराची के कांग्रेस कार्यालय से एक प्रेसनोट तमाम अखबारों को भिजवाने के लिए तैयार हो चुकी है। यह प्रेस नोट कांग्रेस के अखिल भारतीय अध्यक्ष आचार्य जे.बी. कृपलानी की है। आचार्य कृपलानी स्वयं कराची में उपस्थित हैं, परंतु कांग्रेस कार्यालय में जो भी बचे-खुचे कार्यकर्ता हैं उनमें कृपलानी से भेंट करने का कतई कोई उत्साह दिखाई नहीं दे रहा।
इस प्रेसनोट में कृपलानी ने कल लियाकत अली खान द्वारा उन पर एवं कांग्रेस पार्टी पर जो आरोप लगाए हैं, उनका खंडन किया है। “कल लियाकत अली खान ने मुझ पर आरोप लगाया है कि मैं सिंध के हिंदुओं को भड़का रहा हूं और उन्हें सरकार के खिलाफ विद्रोह के लिए उकसा रहा हूं।’ मैं इस आरोप का पूरी तरह से खंडन करता हूं। अपनी कुछ सभाओं में मैंने जिस नारे का उल्लेख किया है, उसमें कहा गया है कि ‘हँस के लिए है पाकिस्तान, लड़ के लेंगे हिन्दुस्तान।’
इस संदर्भ में मैंने हिन्दू और मुसलमान दोनों से ही इस प्रकार की भडकाऊ नारेबाजी बंद करने का आग्रह किया है। ऐसे नारे लगाने वालों से मैंने कहा है कि यदि भारतीय सेना पाकिस्तान की सीमा पर आएगी तो पाकिस्तान के हिंदुओं को बहुत ही बुरी परिस्थिति का सामना करना पड़ेगा। इसी प्रकार यदि पाकिस्तानी सैनिक भारतीय सीमा पर पहुंचेंगे तो भारत के मुसलमानों की परिस्थिति बहुत की विकट हो जाएगी।”
कृपलानी ने आगे कहा कि “कांग्रेस ने अभी भी अखंड भारत की आशा छोड़ी नहीं है। परंतु यह अखंड भारत शांतिपूर्ण मार्ग से प्राप्त किया जाना चाहिए, ऐसा हमारा प्रयास रहेगा।”
दिल्ली का गवर्नर हाउस…
लॉर्ड माउंटबेटन का कार्यालय। लॉर्ड साहब अपनी खास आरामकुर्सी पर पीठ टिकाए, आंखें बंद करके विचारमग्न बैठे हैं। उनकी आंखों के सामने भारत में अंग्रेजी साम्राज्य का विस्तीर्ण इतिहास एक चलचित्र की तरह आ रहा है। ठीक आज के ही दिन… हां आज के ही दिन, तत्कालीन अखंड भारत में अंग्रेजों का राजनैतिक प्रतिनिधित्व आरंभ हुआ था। एकदम सटीक रूप से कहा जाए तो 12 अगस्त 1765 के दिन ही ‘इलाहाबाद समझौता’ हुआ था।
वैसे तो ईस्ट इण्डिया कंपनी भारत में सन् 1600 से काम कर रही थी। इसने भारत में अनेक समझौते भी किये। इलाहाबाद समझौते से पहले मुगलों से, विजापुर के सल्तनत से, मराठों से, निज़ाम से ऐसे अनेकों से हुए। परंतु यह सारे समझौते ‘व्यापारिक’ किस्म के थे। सबसे पहले बक्सर के युद्ध के बाद अंग्रेजों ने पहली बार राजनैतिक स्वरूप का समझौता जिसके साथ किया वह मुग़ल बादशाह शाह आलम (द्वितीय) के साथ किया।
यानी आज से ठीक 182 वर्ष पहले। तब से लेकर आज तक गंगा नदी में काफी पानी बह चुका है। इस बीच 1857 का विद्रोह भी हो गया। लेकिन अब यह साम्राज्य केवल दो दिनों के बाद हम इन भारतीयों को सौंपने जा रहे हैं। एक झटके से लॉर्ड साहब की आंख खुली। फ़िलहाल भूतकाल में झांकने का कोई फायदा नहीं। अभी तो वर्तमान की तरफ ध्यान देना जरूरी है। लॉर्ड साहब एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण विषय को पूरा करने जा रहे हैं, और यह विषय है अखंड हिन्दुस्तान की सेना का विभाजन। इसके द्वारा एयरफोर्स की दस स्क्वाड्रन में से दो पाकिस्तान को और आठ भारत को मिलेंगी।
इसी प्रकार आर्मी और नेवी के विभाजन में भी दो यूनिट भारत को और एक पाकिस्तान को दी जाएगी, ऐसा विभाजन किया जा रहा है। अलबत्ता, अप्रैल 1948 तक फील्ड मार्शल सर क्लाउड अचिंलेक ही दोनों देशों की सेनाओं के सुप्रीम कमाण्डर रहेंगे। इसी प्रकार लॉर्ड माउंटबेटन भी जॉइंट डिफेन्स कौंसिल के चेयरमैन बने रहेंगे। स्वयं माउंटबेटन ने यह घोषणा की।
लंदन…
अंग्रेजों की राजधानी में रहने वाले भारतीय स्वतंत्रता दिवस समारोह मनाने के लिए बहुत उत्साहित और उत्तेजित हैं। इण्डिया हाउस पर 15 अगस्त के दिन भव्य तरीके से तिरंगा फहराया जाने वाला है। इस कार्यक्रम के लिए ब्रिटिश प्रधानमंत्री एटली और उनके मंत्रिमंडल के सहयोगियों को आमंत्रित किया गया है। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता करेंगे ब्रिटेन में भारतीय हाई कमिश्नर कृष्ण मेनन। यह कार्यक्रम 15 अगस्त को सुबह ग्यारह बजे होगा।
इसी के साथ लंदन में अनेक सार्वजनिक स्थानों पर छोटे-छोटे समूहों में भी स्वतंत्रता दिवस मनाया जाएगा। सभी भारतीय उपहार गृहों(रेस्तरांओं) को पंद्रह अगस्त के दिन तिरंगे के रंग से सजाया जाने वाला है। लंदन के वेस्ट-एंड इलाके में भारतीय विद्यार्थियों ने यह आयोजन ‘स्वराज हाउस’ में मनाने का निश्चय किया है। इन्डियन वर्कर्स एसोसिएशन के भव्य समारोह में प्रमुख वक्ता रहेंगे भारत के समाजवादी आंदोलन के प्रमुख नेता अच्युतराव पटवर्धन।
भारत का स्वतंत्रता दिवस मनाने के लिए 14 अगस्त की रात को सवा ग्यारह बजे सिंगापुर के नॉर्थ रिज रोड स्थित ‘रॉयल टॉकीज़’ में ‘धरती’ नामक हिन्दी फिल्म का खास शो दिखाया जाने वाला है। इस फिल्म में त्रिलोक कपूर और मुमताज़ शांति प्रमुख भूमिकाओं में हैं और यह फिल्म अन्य सभी स्थानों पर पहले ही काफी हिट हो चुकी है।
कलकत्ता के बेलियाघाट की हैदरी मंज़िल…
शहीद सुहरावर्दी के साथ एक छत के नीचे रहने के लिए गांधीजी ने यह स्थान चुना हैं। मूलतः यह इमारत एक अंग्रेज व्यापारी की थी। परंतु 1923 में पश्चिम भारत के शिया मुसलमानों में से एक दाऊदी बोहरा समाज के कुछ लोगों ने कुछ प्रॉपर्टी कलकत्ता में खरीद ली थी। उन्हीं में से एक है, ‘हैदरी मंजिल।’ शेख आदम नामक बोहरा व्यापारी ने यह इमारत खरीदी थी। अपनी मृत्यु से पहले शेख आदम ने यह स्थान अपनी बेटी हुसैनी बाई बंगाली के नाम कर दिया हैं।
परंतु फिलहाल इस स्थान पर सुहरावर्दी का कब्ज़ा है। बेलियाघाट एक बेहद गंदा और मलिन परिसर है हिन्दू-मुस्लिमों की मिश्रित जनसंख्या वाला, परंतु फिर भी मुस्लिम बहुल इलाका। इस परिसर की यह इमारत वीरान पड़ी थी। यहां पर कोई भी नहीं रहता था। बड़े-बड़े चूहों का इमारत में साम्राज्य था। परंतु कल से गांधीजी और सुहरावर्दी यहां निवास करने वाले हैं, इसलिए इस इमारत का थोड़ा रंगरोगन और साफसफाई की जा रही है। बड़ी संख्या में कर्मचारी और कारीगर शाम से ही इस स्थान को थोड़ा ठीकठाक स्वरूप में लाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
मुंबई दादर स्थित ‘राष्ट्र सेविका समिति’ की एक कार्यकर्ता का मकान रात के साढ़े नौ बजे हैं, परंतु उस विशाल मकान में लगभग पैंतीस से चालीस सेविकाओं की बैठक चल रही है। राष्ट्र सेविका समिती की प्रमुख संचालिका, यानी लक्ष्मीबाई केळकर अर्थात ‘मौसीजी’, कल सुबह की फ्लाईट से कराची जाने वाली हैं। इसी संदर्भ में यह बैठक है। लगभग आठ दस दिन पहले हैदराबाद, सिंध की जेठी देवानी नामक सेविका का एक पत्र ‘मौसीजी’ को प्राप्त हुआ था।
इस पत्र में उनके परिवार पर आई विपत्तियों और कठिन परिस्थिति का वर्णन था। वह पत्र पढ़कर ही लक्ष्मीबाई केलकर ने यह निर्णय लिया कि सिंध प्रांत में विशेषकर कराची में जाकर सेविकाओं की सारी व्यवस्थाएं ठीक करनी ही होंगी। खंडित तथाकथित स्वतंत्रता के लिए अब केवल 3 रातें ही बची हैं… सीमाओं पर दंगों की आग भडकी हुई है। पंजाब जैसे राज्य में तो मानो प्रशासन नाम की कोई चीज़ बाकी नहीं बची है। मुर्गियों, भेड़-बकरियों की तरह हिन्दू मारे जा रहे हैं। और इधर तीन जून को भारत का विभाजन स्वीकार करने वाले कांग्रेस के नेता, दिल्ली के राजनैतिक वातावरण में चौदह अगस्त की रात्रि वाले स्वतंत्रता समारोह की तैयारियों में लगे हुए हैं…
क्रमशः… भाग-13 भारत विभाजन को अब केवल दो दिन ही बाकी बचे थे…!!!
संदर्भ पुस्तक :- वो पंद्रह दिन, लेखक – प्रशांत पोळ
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