तथाकथित आजादी के “वो पंद्रह दिन”… (श्रृंखला भाग-11)
15 August 1947 Untold Stories Part 11| आज सोमवार होने के बावजूद कलकत्ता शहर से थोड़ा बाहर स्थित सोडेपुर आश्रम में गांधीजी की सुबह वाली प्रार्थना में अच्छी खासी भीड़ हैं। पिछले दो-तीन दिनों से कलकत्ता शहर में शांति बनी हुई हैं। गांधीजी की प्रार्थना का प्रभाव यहां के हिन्दू नेताओं पर दिखाई दे रहा था। ठीक एक वर्ष पहले मुस्लिम लीग ने कलकत्ता शहर में हिंदुओं का जैसा रक्तपात किया था, क्रूरता और नृशंसता का जैसा नंगा नाच दिखाया था, उसका बदला लेने के लिए हिन्दू नेता आतुर हैं।
लेकिन गांधीजी के कलकत्ता में होने के कारण यह कठिन हैं। और इसीलिए अखंड बंगाल के ‘प्रधानमंत्री’ शहीद सुहरावर्दी की भी इच्छा हैं कि गांधीजी कलकत्ता में ही ठहरें। इसका कारण भी साफ हैं, अब यह स्पष्ट हो चला हैं कि विभाजन के पश्चात कलकत्ता हिन्दुस्तान में रहेगा और ढाका पाकिस्तान में जाएगा। हिन्दुस्तान वाले बंगाल के नए मुख्यमंत्री भी तय हो चुके हैं। और अगले पांच दिनों में पश्चिम बंगाल में मुस्लिम लीग का शासन खत्म होने जा रहा है।
इसीलिए, कलकत्ता के मुसलमानों की रक्षा हो सके इसलिए सुहरावर्दी को गांधीजी कलकत्ता में ही चाहिए हैं। आज सुबह की प्रार्थना में गांधीजी ने थोड़ा अलग ही विषय लिया। उन्होंने कहा, “आज में मेरे सामने उपस्थित किए गए प्रश्नों का उत्तर देने वाला हूं। इसमें से मुझ पर एक आरोप यह है कि ‘मेरी प्रार्थना सभाओं में महत्त्वपूर्ण, धनवान नेताओं को ही स्थान मिलता है, जबकि सामान्य व्यक्ति को आगे स्थान नहीं मिलता।’
चूंकि कल रविवार था इसलिए आश्रम में भारी भीड़ हो गई थी। संभवतः इसलिए ऐसा हुआ होगा। में उन सभी लोगों से हृदयपूर्वक बिनती करता हूं कि वे कृपया धैर्य रखें। मैंने अपने कार्यकर्ताओं से कह दिया है कि बिना किसी भेदभाव के सभी लोगों को अंदर आने दें।” “जब में कलकत्ता आया उसी दिन मैंने चटगांव में आई हुई बाढ़ का समाचार पढ़ा था। इस भीषण बाढ़ में न जाने कितने लोगों की मृत्यु हुई हैं।
संपत्ति का कितना नुकसान हुआ यह अभी ठीक से पता नहीं चला है। परंतु ऐसी विपत्ति के समय हमें पश्चिम या पूर्व पाकिस्तान अथवा हिन्दुस्तान जैसी बातों का विचार न करते हुए मदद के लिए तुरंत जाना चाहिए। चटगांव की बाढ़ यानी सम्पूर्ण बंगाल पर आई हुई आपदा है। ‘ऑल बंगाल रिलीफ कमेटी’ बनाकर उसमें सभी को मदद करनी चाहिए, ऐसा में आप सभी से अनुरोध करता हूं। में पूरे दिल से चटगांव के बाढ़ग्रस्त लोगों के साथ हूं।”
“अनेक पत्रकार मुझसे पूछ रहे हैं कि स्वतंत्र भारत में गवर्नर, मंत्री एवं अन्य महत्वपूर्ण पदों पर में किसे नियुक्त करने जा रहा हूं ? मानो मैं कॉंग्रेस वर्किंग कमेटी का सदस्य ही हूं और मैं उनके निर्णयों को प्रभावित कर सकता हूं! मैं तो ऐसा मानता हूं कि मैं कांग्रेसियों के हृदय बसता हूं। यदि मैंने अपनी मर्यादाओं का उल्लंघन किया तो मैं कॉंग्रेस कार्यकर्ताओं के मन से उतर जाऊंगा। इसलिए किसी भी नियुक्ति में कानूनन मेरा कोई अधिकार नहीं है, परंतु नैतिकता की दृष्टि से अधिकार है।”
“क्या आप सभी इस बात से सहमत हैं कि दोनों ही तरफ के लोगों और नेताओं को पूर्व एवं पश्चिम बंगाल के विभिन्न इलाकों में जाकर शांति-सद्भाव का आव्हान करना चाहिए, क्योंकि अब झगड़ा समाप्त हो चुका है ? मेरा उत्तर है, ‘हां’, यदि सभी नेतागण दिल से एकजुट हो जाएं तो सभी प्रश्न हल हो जाएंगे। और इसीलिए में कहता हूं कि मुसलमानों का प्रतिकार मत करो। ‘आँख के बदले आँख की नीति एक जंगली उपाय है। अहिंसा ही सभी प्रश्नों का उत्तर है।”
कराची स्थित ब्रिटिश शैली में निर्मीत भव्य असेम्बली भवन एक राजमहल जैसी दिव्य दिखने वाली विशाल इमारत।
सोमवार, सुबह ठीक 9 बजकर 55 मिनट पर नवनिर्मित पाकिस्तान के पितृपुरुष अर्थात कायदे-आज़म जिन्ना एक सजाई हुई शाही बग्धी से इस इमारत के पोर्च में उतरे। उनके स्वागत हेतु कड़क प्रेस किए हुए गणवेश में कुछ अधिकारी एवं लियाकत अली खान जैसे कुछ निंदा लोग मौजूद हैं। ठीक दस बजे पाकिस्तान की संविधान सभा की पहली बैठक आरंभ हुई और इस बैठक के अस्थायी अध्यक्ष है, जोगेन्द्र नाथ मण्डल।
जोगेंद्रनाथ मण्डल ने बैठक की शुरुआत की, “अध्यक्ष पद के चुनाव हेतु जो प्रस्ताव कल की बैठक में रखा गया था उसके पैराग्राफ क्रमांक २ का पालन करते हुए मैं घोषणा करता हूं कि इस पद के लिए मुझे कुल सात नामांकन पत्र कायदे आज़म जिन्ना के समर्थन में प्राप्त हुए हैं। इन सम्माननीय सदस्यों के नाम इस प्रकार हैं…
1. गयासुद्दिन पठान,
2. हमीदुल हक चौधरी,
3. अब्दुल कासिम खान,
4. माननीय लियाकत अली खान,
5. ख्वाजंज़िमुद्दीन,
6. माननीय एम. के. खुहरो,
7. मौलाना शब्बीर अहमद उस्मानी।
उपरोक्त सभी सातों मान्यवर सदस्यों ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया है। अन्य किसी भी व्यक्ति का नामांकन प्राप्त नहीं हुआ है, इसलिए मैं मान्यवर कायदे आज़म जिन्ना को पाकिस्तान की संविधान सभा का अध्यक्ष घोषित करता हूं। अब मैं कायदे आज़म साहब से अनुरोध करता हूं कि वे कृपया अपना आसन ग्रहण करें।”
लियाकत अली खान और सरदार अब्दुल रब खान निश्तार दोनों कायदे आज़म जिन्ना को अध्यक्ष के आसन तक ले गए। तालियों की गडगडाहट के बीच मोहम्मद अली जिन्ना ने अपना आसन ग्रहण किया। पूर्वी बंगाल के लियाकत अली खान ने अध्यक्ष पद पर आसीन जिन्ना का गौरवगान करते हुए पहला भाषण दिया। उन्होंने जिन्ना की मुक्त कंठ से प्रशंसा की और उनके साथ पिछले ग्यारह वर्षों से किए गए कामों का उल्लेख भी किया।
उन्होंने कहा कि, “यह एक ऐतिहासिक आश्चर्य ही है कि बिना किसी रक्तपात के बिना किसी रक्तरंजित क्रांति के आपके नेतृत्व में हमने अपना पाकिस्तान हासिल कर लिया है।” लियाकत अली के बाद पूर्वी बंगाल की कॉंग्रेस पार्टी के किरण शंकर रॉय ने भी कॉग्रेस पार्टी की ओर से जिन्ना का अभिनंदन किया, उन्होंने पंजाब और बंगाल के विभाजन संबंधी अपनी आपत्तियां और नापसंद खुलकर ज़ाहिर कर दीं। साथ ही यह भी स्पष्ट कर दिया कि चूर्णितः यह निर्णय काँग्रेस और मुस्लिम लीग दोनों की सहमति से हुआ है, इसलिए हमारी पूर्ण निष्ठा इस देश के प्रति समर्पित हैं।
रॉय के बाद सिंध प्रांत में आए एम.ए. खुहरो का भाषण हुआ। फिर जोगेंद्रनाथ मण्डल बोले, पूर्वी बंगाल के अब्दुल कासिम खान और पश्चिमी पंजाब की बेगम जहां आरा शाहनवाज के बोलने के पश्चात सबसे अंत में कायदे आज़म जिन्ना बोलने के लिए खड़े हुए। इस समय तक दोपहर के बारह बज चुके थे। जिन्ना अत्यंत सपाट भावरहित चेहरे के साथ बोल रहे थे, मानो वो किसी अदालत में सधी सरल बहस कर रहे हो।
उन्होंने कहा, “इस असेम्बली में उपस्थित सभी स्त्री-पुरुषों… आपने मुझे जो जिम्मेदारी दी है में उसके लिए आपका आभार व्यक्त करता हूं। जिस पद्धति से हमने पाकिस्तान का निर्माण कर लिया है, इतिहास में ऐसा कोई भी दूसरा उदाहरण नहीं है। इस कॉन्स्टीट्युएंट असेम्बली के दो प्रमुख उद्देश्य हैं। पहला यह कि हमें इसके माध्यम से अपने पाकिस्तान का सार्वभौम संविधान तैयार करना है। और दूसरा यह कि हमें एक सार्वभौम, संपूर्ण राष्ट्र के रूप में अपने पैरों पर खड़े होना है। हमारा पहला उद्देश्य क़ानून और व्यवस्था कायम करना है।
रिश्वतखोरी और काला बाजारी को पूरी तरह से बंद करना होगा। मुझे जानकारी है कि सीमा के दोनों तरफ, पंजाब और बंगाल का विभाजन स्वीकार ना करने वाले अनेक लोग होंगे। परंतु कम से कम मुझे तो इसके जलावा कोई दूसरा विकल्प समझ में नहीं आता। अब चूंकि यह निर्णय हो ही चुका है, तो हम इसे पूरी व्यवस्था और समझदारी के साथ लागू करें।”
“आप चाहे किसी भी धर्म के हों, पाकिस्तान में आप अपने श्रद्धा स्थानों और पूजास्थलों में जाने के लिए मुक्त हैं।
आप मंदिर जाएं अथवा मस्जिद जाएं, आपके ऊपर कोई बंधन नहीं होगा, पाकिस्तान में सर्वधर्म समभाव है और रहेगा। हिन्दू, मुस्लिम, रोमन कैथोलिक, पारसी ये सभी लोग पाकिस्तान में पूर्ण सदभाव के साथ, आपस में मिलजुलकर रहेंगे। धर्म को लेकर किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा।” सभागृह में बैठे हुए मुस्लिम लीग के सदस्य मन ही मन यह विचार कर रहे थे कि, ‘यदि वास्तव में ऐसा ही है, तो फिर हमने पाकिस्तान का निर्माण क्यों और किसके लिए किया हैं….?”
सुबह के ग्यारह बजे हैं। आज सूर्य बहुत आग उगल रहा है। बारिश के कोई आसार नजर नहीं आ रहे हैं। आकाश एकदम स्वच्छ है। सप्ताह भर पहले अच्छी बारिश हुई थी, इसलिए आसपास का वातावरण हरा-भरा है।
कलात…
बलूचिस्तान के प्रमुख शहरों में से एक कलात, क्वेटा से केवल नब्बे मील दूरी पर स्थित सघन जनसंख्या वाला यह शहर है। मजबूत दीवारों के भीतर बसे हुए इस शहर का इतिहास दो-ढाई हजार वर्ष पुराना है। कुजदर, गंदावा, नुश्की, क्वेटा जैसे शहरों में जाना हो तो कलात शहर को पार करके ही जाना पड़ता था। इसीलिए इस शहर का एक विशिष्ट सामरिक महत्त्व भी था। बड़ी-बड़ी दीवारों के अंदर बसे इस शहर के मध्यभाग में एक बड़ी सी हवेली है।
इस हवेली के (गढ़ी के) जो खान हैं, उनका ‘राजभवन’ यह बलूचिस्तान की राजनीति का प्रमुख केन्द्र है। इस राजभवन में मुस्लिम लीग, ब्रिटिश सरकार के रेजिडेंट और कलात के मीर अहमद यार खान की एक बैठक चल रही है। इनके बीच एक संधि पर हस्ताक्षर होने वाले हैं, जिसके माध्यम से आज दिनांक से अर्थात 11 अगस्त 1947 से, कलात एक स्वतंत्र देश के रूप में काम करने लगेगा। ब्रिटिश राज्य व्यवस्था में बलूचिस्तान के कलात का एक विशेष स्थान पहले से ही है।
सारी 560 रियासतों और रजवाड़ों को इन्होंने ‘अ’ श्रेणी में रखा है, जबकि सिक्किम, भूटान, और कलात को उन्होंने ‘ब’ श्रेणी की रियासत का दर्जा दिया हुआ है। अंततः दोपहर एक बजे संधिपत्र पर तीनों के हस्ताक्षर हो गए। इस संधि के द्वारा यह घोषित किया गया कि कलात अब भारत का राज्य नहीं रहा, बाकि यह एक स्वतंत्र राष्ट्र है।
मीर अहमद यारखान इस देश के पहले राष्ट्रप्रमुख हैं। कलात के साथ ही मीन अहमद यार खान साहब का पर्ण वर्चस्व इस इलाके के पडोस में स्थित लासबेला मकरान और खारान क्षेत्रों पर भी हैं। इसलिए भारत और पाकिस्तान का निर्माण होने से पहले ही इन सभी भागों को मिलाकर मीर अहमद यार खान के नेतृत्व में बलूचिस्तान राष्ट्र का निर्माण हो गया हैं।
‘ऑलइण्डिया रेडियो’ दिल्ली का मुख्यालय… ए. आई. आर. की प्रेस नोट सभी अखबारों को भेजी जा चुकी है. ए.आई.आर. के मुख्यालय में अच्छी खासी व्यस्तता है। चौदह और पंद्रह अगस्त की तैयारियां जोरशोर से चल रही हैं। चौदह तारीख की रात का आंखों देखा हाल, गॉल इण्डिया रेडियो को ही करना है। उसका पूरा कार्यक्रम तैयार हो चुका है। 14 अगस्त रात को 8:10 से लेकर 8:45 तक इण्डिया गेट पर राष्ट्रध्वज फहराया जाएगा।
उसका आंखों देखा हाल अंग्रेजी में प्रसारित किया जाएगा। रात को 10:30 से 11:00 तक : श्रीमती सरोजिनी नायडू का संदेश अंग्रेजी में प्रसारित किया जाएगा, उसके बाद पंडित जवाहरलाल नेहरू का संदेश अंग्रेजी में प्रसारित होगा। फिर इन दोनों संदेशों का अनुवाद हिन्दी में प्रसारित किया जाएगा। यह प्रसारण 17.84 MHz और 21.51 MHz मीटरों पर किया जाएगा। रात्री 11:00 से 12:30 तक संविधान सभा भवन में चलने वाले सत्ता हस्तांतरण का आंखों देखा हाल भी प्रसारित किया जाएगा। यह प्रसारण 17.76 MHz और 21.51 MHz मीटरों पर किया जाएगा।
दिल्ली में स्थित एक बड़ा सा बगला। गौहत्या विरोधी परिषद का सम्मेलन यहां पर जारी है। इसकी अध्यक्षता कर रहे हैं, जिन्ना का बंगला खरीदने वाले सेठ रामकृष्ण डालमिया। इस बैठक में यह प्रस्ताव पारित किया गया है कि स्वतंत्र भारत की पहली सरकार से यह अनुरोच किया जाएगा कि, गौवंश की रक्षा करना, गौवंश की उत्तम देखरेख करना यह भारतीयों का मूलभूत अधिकार होना चाहिए प्रतिवर्ष करोड़ों की संख्या में गायों का क़त्ल हो रहा है, वह पूर्णरूप से बंद होना चाहिए। देश के विकास में गौवंश की बड़ी मह वपूर्ण भूमिका है।’ रामकृष्ण डालमिया जी का विचार है कि औरंगजेब रोड पर स्थित जिन्ना के इस बंगले को ही गौहत्या विरोधी आंदोलन का मुख्य केंद्रबिंदु बनाया जाए, इसका प्रतीकात्मक संदेश भी अच्छा रहेगा।
कराची…
भोजन के पश्चात अगले सत्र में पाकिस्तान की संविधान सभा बैठक में कुछ खास काम नहीं हुआ। केवल पकिस्तान के राष्ट्रध्वज के बारे में निर्णय लिया गया। इसके अनुसार पाकिस्तान के राष्ट्रध्वज में एक चौथाई सफ़ेद और तीन चौथाई रंग हरा होगा तथा इसमें चाँद तारे की डिजाइन बनी हुई होगी। यह प्रस्ताव संविधान सभा के सामने रखा गया और एकमत से पारित भी हो गया।
मद्रास…
यहां पर जस्टिस पार्टी की बैठक जारी है। यह पार्टी 31 वर्ष पुरानी है, लेकिन आज भी यह ब्राह्मणवाद विरोधी राजनीति ही करती है। इसके अध्यक्ष पी.टी. राजन ने इस बैठक में भारत की स्वतंत्रता का स्वागत करने संबंधी प्रस्ताव रखा, जो बहुमत से पारित किया गया। यह भी निश्चित किया गया कि, पंद्रह अगस्त के दिन मद्रास राज्य में स्वतंत्रता दिवस उत्साह और उल्लास के साथ मनाया जाएगा।
इसके साथ ही यह प्रस्ताव भी पारित किया गया कि भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद तत्काल ही भाषावार प्रांतों की रचना करने की मांग रखी जाएगी। लॉर्ड माउंटबेटन का आज का दिन बेहद व्यस्तता भरा रहा। सुबह सवेरे उठते ही उन्होंने अपने शयनकक्ष में लगे बड़े से कैलेण्डर की तरफ हसरत भरी निगाहों से देखा। केवल चार दिन ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन रहे भारत से अपना बोरिया-बिस्तर समेटने का समय जब केवल चार दिन के लिए ही बचा है!
सुबह लॉर्ड साहब की डॉक्टर कुंवर सिंह और सरदार पणिक्कर के साथ एक बैठक हुई। यह बैठक बहुत महत्त्वपूर्ण थी, क्योंकि इससे पहले भोपाल के नवाब की बातों में आकर बीकानेर के महाराज ने भी उनकी रियासत को भारत में विलीन करने की दिशा में अनिच्छा जाहिर की थी। लेकिन माउंटबेटन को ऐसी छोटी-छोटी स्वतंत्र रियासतें नहीं चाहिए थीं। क्योंकि जितने ज्यादा स्वतंत्र रियासतें रहेगी, ब्रिटिश सत्ता का सिरदर्द उतना ही बढ़ जाता।
इसीलिए इस बैठक का बहुत महत्त्व था। इस बैठक के बाद माउंटबेटन ने डॉक्टर कुंवर सिंह और सरदार पणिक्कर को ठीक से पूरी स्थिति समझाई कि ‘यदि बीकानेर रियासत पाकिस्तान के साथ विलीन की गयी, तो किस प्रकार की अनिश्चितता और अशांति निर्माण हो सकती है।’ इस मुलाक़ात के बाद माउं बेटन को विश्वास हो गया कि संभवतः अब बीकानेर रियासत के विलीनीकरण का प्रश्न समाप्त हो ही जाएगा।
दोपहर को ही माउंटबेटन ने दख्खन के हैदराबाद रियासत के नवाब को पत्र लिख दिया कि ‘हैदराबाद स्टेट के भारत में शामिल होने संबंधी ऑफर’ अभी दो महीने और बढ़ाई जा रही है। बंगाल के पूर्व में स्थित जेस्सोर, खुलना, राजशाही, दीनाजपुर, रंगपुर, फरीदपुर, बारीसाल, नांदेया जैसे गांवों में शाम के साढ़े पांच बजे दीप प्रज्ज्वलन और रोशनी का समय हो चुका है।
अंधियारी शाम का यह उदास वातावरण, हल्की बारिश और संभावित दंगों का भय, इनके कारण समूचे वातावरण में एक मलिनता सी छाई हुई हैं। ये सभी गांव हिन्दू बहुल थे, परंतु पिछले वर्ष ‘डायरेक्ट एक्शन डे’ के बाद से ही यहां मुस्लिम लीग के गुंडे बेहद आक्रामक हो चले हैं। उन्होंने हिन्दू डॉक्टरों, प्राध्यापकों और जमींदारों को पश्चिम बंगाल भाग जाने का आदेश दिया हुआ हैं।
बारिसाल…
साठ-सत्तः हजार जनसंख्या वाला छोटा सा शहर बारिसाल… इसे पूर्व का वेनिस भी कहा जाता है। ‘कीर्तनखोला’ नदी के किनारे पर बसा हुआ यह शहर पूरी तरह से हिन्दू संस्कृति में रचा-बसा है। बारिसाल पर तो बंगाल के नवाब का शासन भी संभव नहीं हुआ था। अंग्रेजों द्वारा बंगाल को अधीन करने से पहले यहां के अंतिम राजा थे, राजा रामरंजन चक्रवर्ती। मुकुंद दास नामक कविराज द्वारा निर्मित भव्य काली मंदिर और हिन्दू राजाओं द्वारा निर्माण किया गया विशाल दुर्गा सरोवर बारिसाल की विशिष्टता है।
ऐसे हिन्दू चेहरे-मोहरे-संस्कृति वाले बारिसाल से हिन्दुओं को मुसलमान जबरन बाहर निकाल रहे हैं। पता नहीं बारिसाल और समूचे पूर्वी बंगाल के हिन्दुओं ने कौन से पाप किए हैं…? दोपहर के साढ़े चार बज रहे हैं। धूप अब उतरने लगी है। सोडेपुर आश्रम में थोड़ी व्यस्तता है, क्योंकि अभी गांधीजी कलकत्ता के दंगाग्रस्त भागों का दौरा करने वाले हैं। खंडित पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री डॉक्टर प्रफुल्ल चन्द्र घोष, कलकत्ता के मेयर एस. सी. रॉय चौधरी और पूर्व मेयर एस. एम. उस्मान भी आश्रम में पहुंच चुके हैं। इन सभी को साथ लेकर ही गांधीजी यह दौरा करने वाले हैं।
अगले पांच मिनट में है। कलकत्ता के पुलिस कमिश्नर एस. एन. चटर्जी भी पहुंच गए और यह दौरा आरंभ हुआ। पांच-छः कारें, आगे-पीछे पलिस की गाडियां, इस प्रकार यह काफिला कलकत्ता के दंगाग्रस्त इलाके की परिस्थिति देखने निकला। पाइकपारा, चिटपोर, बेलगाछी, मानिकतोला, बेलियाघाट, नर्कल, एन्टेली, तंगरा और राजा बाजार, दंगों में पूरी तरह ध्वस्त हो चुके मकान, जल कर खाक हो चुके मंदिर और दुकानें!
चितपुर में हिन्दुओं के जले हुए मकानों के भग्नावशेष देखते हुए गांधीजी कुछ देर वहां खड़े रहे। बहुत से मकानों में, जिन्हें दंगाईयों ने नष्ट कर दिया था, अब कोई भी नहीं रहता हैं। शाम के धुंधलके में ऐसे सुनसान और भयानक दृश्य को गांधीजी देखतेही रह गए. बेलियाघाट परिसर में कुछ हजार लोग इकट्ठे हैं।
उन्होंने ‘महात्मा गांधी की जय’ के नारे जरूर लगाए, लेकिन अन्य किसी भी स्थानार इस काफिले को देखकर लोगों ने कोई भी प्रतिक्रिया नहीं दिखाई। अपना सब कुछ गंवा चुके ये हिन्दू एकदम शुष्क और निर्तिकार चेहरे के साथ गांधीजी की तरफ देख रहे हैं। पचास मिनट का यह दौरा निपटाकर जब गांधीजी सोंडेपुर आश्रम पहुंचे, तब तक उनका मन एकदम विषण्ण और खिन्न हो चुका था…
क्रमशः… भाग-12 भारत विभाजन को अब केवल तीन दिन ही बाकी बची थे…!!!
संदर्भ पुस्तक :- वो पंद्रह दिन, लेखक – प्रशांत पोळ
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