श्री प्रेम मंदिर की परमाध्यक्षा ने गुरुदेव चतुर्थ के द्वारा किए गए तप, सेवा, सिमरन को स्मरण किया एवं सभी कार्य आज भी उनकी अदृश्य शक्ति द्वारा सम्पन्न हो रहे हैं। हम सब तो केवल निमित्त मात्र हैं। सम्मेलन के समापन पर सभी सन्तों का आभार प्रकट किया एवं सभी संगत से किसी सेवादार देवियों अथवा किसी के द्वारा यदि कोई त्रुटि हुई हो तो उसके लिए क्षमा करें और उसको यहीं छोड़ कर जाएं। सन्तों द्वारा दिए गए उपदेश लेकर जाएं। सत्संग के बाद प्रभु प्रसादी का अखुट लंगर प्राप्त कर संगत निहाल हुई। श्री प्रेम मंदिर (लैय्या) ट्रस्ट पानीपत शहर के प्रशासन नगर निगम पुलिस एवं मीडिया द्वारा प्रदान सेवा सहयोग का बहुत-बहुत धन्यवाद करता है। आशा है कि आगे भी ऐसा ही सहयोग मिलता रहेगा। आज के सत्र में मुक्तसर, गोहाना, बहादुरगढ़, झज्जर, दुजाना, रोहतक, कैथल, कानपुर, पंचकुला आदि से आए तथा श्री प्रेम मन्दिर सेवक सभा के सभी सेवादारों तथा पानीपत की बहुत सारी संस्थाओं के सेवादारों ने सेवा में बढ़चढ़कर भाग लेकर जीवन को सफल बनाया।
104th ‘Prem Sammelan’ Of Shri Prem Mandir Panipat : श्री प्रेम मंदिर पानीपत का 104वां ‘प्रेम सम्मेलन’ हर्षोल्लास व भण्डार के साथ सम्पन्न
Aaj Samaj (आज समाज),104th ‘Prem Sammelan’ Of Shri Prem Mandir Panipat,पानीपत : 11 फरवरी से प्रारंभ हुआ 104वां ‘प्रेम सम्मेलन’ सद्गुरूदेव श्री श्री 108 श्री मदनमोहन हरमिलापी महाराज परमाध्यक्ष हरमिलाप मिशन हरिद्वार की अध्यक्षता में एवं श्री प्रेम मन्दिर पानीपत की परमाध्यक्षा परम पूज्या कान्तादेवी महाराज के संयुक्त तत्वावधान में आज बड़े ही हर्षोल्लास के साथ सम्पन्न हुआ। प्रातः गुरूदेव ने मन्दिर की देवियों व संगत के साथ हनुमान चालीसा तथा प्रभु नाम के साथ हवन किया। तत्पश्चात श्री रामचरितमानस के अखण्ड पाठ भी विश्राम को प्राप्त हुए। सत्संग में पधारे सभी संत वृंद ने कहा कि शरीर मन व विचारों में पवित्रता होना नितांत आवश्यक है। सद्व्यवहार सद् आचरण व परस्पर प्रेम भाव से ही ऐसा होना संभव हो सकता है। अन्तःकरण में व्याप्त विकार अर्थात घृणा, क्रोध, लोभ, मोह, ईर्ष्या केवल और केवल क्षमा प्रेम वैराग्य, समर्पण, त्याग व अनुकूलता से ही नियंत्रित किया जा सकते हैं। श्रीरामचरितमानस तो हमें सीखने व आचरण के लिए प्रेरित करता है वह है परस्पर त्याग, प्रेम तथा समर्पण। श्री हरमिलाप मिशन हरिद्वार के परमाध्यक्ष ने ‘एक बनो, नेक बनो’ होने पर बल दिया। अनेकता में एकता से ही परिवार, समाज व राष्ट्र में सुख, शान्ति सम्भव है। घृणा को प्रेम से मोह को वैराग्य से क्रोध को क्षमा से तथा लोभ को संतोष से काबू किया जा सकता है।