शिव पुराण में शिवलिंग की अपार महिमा का संपूर्ण बखान किया गया है। सृष्टि के आरम्भ काल से ही समस्त देवता, ऋषि, मुनि, असुर, मनुष्यादि विभिन्न प्रकार के शिवलिंगों की पूजा करते आये हैं। यही नहीं स्कन्दपुराण में शिवलिंग की उपासना से इन्द्र, वरूण, कुबेर, सूर्य, चंद्र आदि का स्वर्ग पर राज रहा और पृथ्वी पर राजाओं का चक्रवर्ती साम्राज्य भी शिवलिंग की पूजा से ही रहा।
भारतवर्ष में बारह ज्योतिलिंर्गों के अलावा भगवान शिव के लाखों मंदिर मिलेंगे जहाँ विभिन्न धातुओं से शिवलिंग बने हुए हैं और लोग नित उनकी पूजा करते हैं। विभिन्न वस्तुओं से बने शिवलिंग विभिन्न प्रकार के कार्य सिद्ध करते हैं । भारत में अधिकतर पाषाणमय शिवलिंग प्रतिष्ठित और पूजित होते हैं। इन्हें अचल मूर्तियां कहा जाता है। वाणलिंग या सोने-चांदी के छोटे लिंग जंगम कहलाते हैं। इन्हें प्राचीन पाशुपत-सम्प्रदाय एवं लिंगायत-सम्प्रदाय वाले पूजा के व्यवहार में लाने के लिए अपने साथ भी रखते हैं। गरूण पुराण में इसका अच्छा विस्तार है। उसमें से कुछ का संक्षेप में परिचय इस प्रकार है।
गन्धलिंग:- दो भाग कस्तूरी, चार भाग चंदन और तीन भाग कुंकुम से इसे बनाया जाता है।
पुष्पलिंग:- विविध सौरमय फूलों से बनाकर यह पृथ्वी के आधिपत्य लाभ के लिए पूजे जाते हैं।
गोशकृल्लिंग:- स्वच्छ कपिल वर्ण की गाय के गोबर से शिवलिंग बनाकर पूजने से ऐश्वर्य मिलता है।
बालुकामयलिंग:- बालू से बनाकर पूजने वाला शिवलिंग विद्याधरत्व और फिर शिवसायुज्य प्राप्त कराता है।
यवगोधूमशालिजलिंग:- जौ, गेहूं, चावल के आटे का शिवलिंग बनाकर श्रीपुष्टि और पुत्रलाभ के लिए पूजते हैं।
सिताखण्डमयलिंग:- यह शिवलिंग मिस्त्री से बनता है, इसके पूजन से आरोग्य लाभ होता है।
लवणजलिंग:- यह शिवलिंग हरताल, त्रिकटु को लवण में मिलाकर बनता है। इससे उत्तम प्रकार का वशीकरण होता है।
तिलपिष्टोत्थलिंग:- यह शिवलिंग तिल को पीसकर उसके चूर्ण से बनाया जाता है, यह अभिलाषा सिद्ध करता है।
भस्मयलिंग:- यह शिवलिंग सर्वफलप्रद और गुडोत्थलिंग प्रीति बढ़ाने वाला है और शर्करामयलिंग सुखप्रद है।
वंशांकुरमय:- बांस के अंकुर से निर्मित लिंग वंशकर है।